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कविता

आह्लाद

महेन्द्र भटनागर


बदली छाई
बदली छाई!

दिशा-दिशा में
बिजली कौंधी,
मिट्टी महकी
सोंधी-सोंधी!

युग-युग
विरह-विरस में
          डूबी,
एकाकी
घबराई
      ऊबी,
अपने
प्रिय जलधर से
मिल कर,
हाँ, हुई सुहागिन
          धन्य धरा,
मेघों के रव से
          शून्य भरा!

वर्षा आई
वर्षा आई!
उमड़ी
शुभ
घनघोर घटा,
छाई
श्यामल दीप्त छटा!

दुलहिन झूमी
घर-घर घूमी
मनहर स्वर में
कजली गाई!

बदली छाई
वर्षा आई!


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हिंदी समय में महेन्द्र भटनागर की रचनाएँ